बोलता सच : आज पूरी दुनिया ईरान-इस्त्राइल के बीच छिड़े युद्ध से परेशान दिख रही है। दोनों देशों द्वारा एक दूसरे पर खतरनाक मिसाइलों व ड्रोन से हमले किए जा रहे हैं। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ईरान के वर्तमान शासक से बाराबंकी जिले का गहरा रिश्ता है। जिले का किंतूर वही गांव है जहां से जुड़े लोगों ने ही ईरान में बगावत की कहानी लिखी थी। इसने ईरान की तत्कालीन सरकार का तख्तापलट कर एक नई इस्लामी हुकूमत कायम की। किंतूर से ईरान गए सैय्यद अहमद मूसवी के पोते रूहुल्लाह खामनेई के उत्तराधिकारी ही आज ईरान के सर्वोच्च नेता है और इस्राइल से जंग लड़ रहे हैं।
करीब 230 साल पहले 1790 में सिरौलीगौसपुर तहसील के किंतूर गांव के एक धार्मिक परिवार में सैय्यद अहमद मूसवी का जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई के बाद 1830 में 40 साल की उम्र में अहमद मूसवी अवध के नवाब के साथ धर्म यात्रा पर इराक गए थे। इराक से दोनों ईरान पहुंचे और अहमद मूसवी वहीं के एक गांव खुमैन में बस गए। अहमद मूसवी ने अपने नाम के आगे उपनाम हिंदी जोड़ा ताकि यह अहसास बना रहे कि वह हिंदुस्तान से हैं। इसके बाद लोग उन्हें सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी के नाम से पहचानने लगे।
अहमद मूसवी के परिवार में कई विद्वान हुए। उनके पोते रूहुल्लाह अयातुल्ला खामनेई के नाम से मशहूर हुए। पिता की मौत के बाद मां और भाई ने मिलकर उन्हें पाला और पढ़ाया। रूहुल्लाह बहुत तेज थे। उन्होंने धर्म की पढ़ाई के साथ-साथ दुनिया के बड़े दार्शनिकों की किताबें भी पढ़ीं। उस समय ईरान में पहलवी खानदान का राज था। राजा जनता पर जुल्म करता था और पश्चिमी देशों के इशारे पर चलता था। खामनेई ने इसका खुलकर विरोध किया।
इसके बाद राजा ने उन्हें देश से निकाल दिया। राजा ने सात जनवरी 1978 को ईरान के एक अखबार में खुमैनी को भारतीय एजेंट बता दिया। इसके बाद ईरान की सड़कों पर खामनेई के पक्ष में आम लोग उतर आए। 16 जनवरी 1979 को राजा ईरान छोड़कर भाग गया। एक फरवरी 1979 को अयातुल्ला खामनेई 14 साल के बाद वापस ईरान आए। इसके बाद 11 फरवरी 1979 में ईरान में इस्लामी सरकार बनी। खामनेई ईरान के पहले सुप्रीम लीडर घोषित किए गए। अब मूसवी की चौथी पीढ़ी ईरान पर शासन कर रही है।
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