नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) एक बार फिर आंतरिक कलह के दौर से गुजर रही है। हाल ही में पार्टी के कई पार्षदों द्वारा खुले तौर पर असंतोष जाहिर करने और पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। माना जा रहा है कि यह बगावत पार्टी के भीतर गहरी दरार की ओर इशारा कर रही है, जो आने वाले दिनों में संगठन के स्वरूप और राजनीतिक प्रभाव को प्रभावित कर सकती है।
बगावत की वजहें:
सूत्रों के अनुसार, नाराज़ पार्षदों का आरोप है कि पार्टी नेतृत्व ने स्थानीय स्तर पर उनकी उपेक्षा की है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है। टिकट वितरण, फंड आवंटन और क्षेत्रीय नेतृत्व के रवैये को लेकर असंतोष लंबे समय से दबा हुआ था, जो अब सार्वजनिक मंचों पर फूट पड़ा है।
सियासी नुकसान का खतरा:
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि समय रहते हालात नहीं संभाले गए, तो यह बगावत आम आदमी पार्टी को आगामी चुनावों में नुकसान पहुँचा सकती है। दिल्ली नगर निगम (MCD) में ‘आप’ की पकड़ पहले से ही कई जगह कमजोर हुई है, और अब बगावत ने पार्टी की छवि पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
केजरीवाल की चुप्पी पर उठे सवाल:
दिलचस्प बात यह है कि पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने अब तक इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। उनकी चुप्पी को लेकर विपक्ष भी हमलावर हो गया है। भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने इसे “गिरते नेतृत्व” की निशानी बताया है।
पार्टी की प्रतिक्रिया:
हालांकि पार्टी की ओर से जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा गया है कि “सभी मतभेदों को आंतरिक संवाद से सुलझाया जाएगा” और “पार्टी एकजुट है”, लेकिन ग्राउंड रियलिटी कुछ और ही संकेत दे रही है।
आगे क्या?
अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि पार्टी नेतृत्व इस संकट से कैसे निपटता है — क्या यह सिर्फ एक अस्थायी झटका है, या फिर आम आदमी पार्टी के भविष्य की राजनीति को नया मोड़ देने वाला मोड़?
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