बोलता सच : उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण के विरोध में किसान संगठनों ने एएसडीएम को ज्ञापन सौंपा है। पावर कारपोरेशन ने वित्तीय समीक्षा बैठक में दक्षिणांचल और पूर्वांचल वितरण निगमों के निजीकरण का निर्णय लिया है। राज्य सरकार इस निर्णय पर सहमत दिखाई दे रही है।
कर्मचारियों का कहना है कि सरकार 2022 से ही निजीकरण का प्रयास कर रही है। किसान पहले से ही केंद्र सरकार के बिजली संशोधन बिल 2020 का विरोध कर रहे हैं। यह मुद्दा 13 महीने के किसान आंदोलन में भी प्रमुख था। सरकार ने 9 दिसंबर को किसानों से वार्ता का लिखित वादा किया था। लेकिन बाद में लोकसभा में बिजली संशोधन बिल 2022 पेश कर दिया गया।
संविदा कर्मियों को नियमित करने की मांग
कर्मचारियों की मांगों में ग्रामीण उपभोक्ताओं को प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली, स्मार्ट मीटर योजना रद्द करने और किसानों के ट्यूबवेलों को 18 घंटे बिजली की आपूर्ति शामिल है। साथ ही उपभोक्ताओं से विभिन्न शुल्क वसूली बंद करने, निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीद रोकने और संविदा कर्मियों को नियमित करने की मांग की गई है। कर्मचारियों का आरोप है कि आंदोलनकारियों को धमकाया जा रहा है और उनके खिलाफ बर्खास्तगी के नोटिस जारी किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि निजीकरण से लाखों बिजली कर्मी बेरोजगार हो जाएंगे।
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